नर्मदा चालीसा – जय जय नर्मदा भवानी 

Chalisa (चालीसा) Narmada Chalisa (नर्मदा चालीसा )

इनकी सेवा से सदा,
मिटते पाप महान ।
तट पर कर जप दान नर,
पाते हैं नित ज्ञान ॥

अमरकण्ठ से निकली माता,
सर्व सिद्धि नव निधि की दाता ।

सप्तमी सुर्य मकर रविवारा,
अश्वनि माघ मास अवतारा ॥4

ब्रह्मा हरि हर तुमको ध्यावैं,
तब ही मनवांछित फल पावैं ।

जो नर तुमको नित ही ध्यावै,
वह नर रुद्र लोक को जावैं ॥8

मस्तक मुकुट सदा ही साजैं,
पांव पैंजनी नित ही राजैं ।

पूरब से पश्चिम की ओरा,
बहतीं माता नाचत मोरा ॥12

शिव गणेश भी तेरे गुण गवैं,
सकल देव गण तुमको ध्यावैं ।

मनोकमना पूरण करती,
सर्व दु:ख माँ नित ही हरतीं ॥16

पर नर्मदा ग्राम जंगल में,
नित रहती माता मंगल में ।

मेकल कन्या तुम ही रेवा,
तुम्हरी भजन करें नित देवा ॥20

समोद्भवा नर्मदा तुम हो,
पाप मोचनी रेवा तुम हो ।

जल प्रताप तुममें अति माता,
जो रमणीय तथा सुख दाता ॥24

तुम में पड़ी अस्थि भी भारी,
छुवत पाषाण होत वर वारि ।

सरस्वती तीन दीनों में देती,
गंगा तुरत बाद हीं देती ॥28

तुम्हरी महिमा है अति भारी,
जिसको गाते हैं नर-नारी ।

घाट-घाट की महिमा भारी,
कवि भी गा नहिं सकते सारी ।

हो प्रसन्न ऊपर मम माता,
तुम ही मातु मोक्ष की दाता ॥35

जो शत बार इसे है गाता,
वह विद्या धन दौलत पाता ।

सबके उर में बसत नर्मदा,
यहां वहां सर्वत्र नर्मदा ॥40

॥ इति श्री नर्मदा चालीसा ॥

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